बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व
- Giridih City Updates
- Oct 31, 2019
- 6 min read
भगवान बुद्ध को कौन नहीं जानता, लेकिन बहुत ही कम लोगों को ये मालूम है की बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है? हो सकता है की आपको ये मालूम हो की बुद्ध पूर्णिमा क्या है? इसका क्या महत्व है? यह शिक्षा के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? लेकिन ऐसे बहुत है जिन्हें की इन सभी के विषय में जानकारी नहीं है. वहीँ आज मैं इस पोस्ट में आपको बुद्ध पूर्णिमा के बारे में विस्तार से बताऊंगा.
बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध कैलेंडर में सबसे पवित्र समय है. इसे भारत में वेसाक या विशाखा पूजा के रूप में भी जाना जाता है. बुद्ध पूर्णिमा को गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञानोदय और उनके निधन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. तो चलिए जानते हैं बुद्ध पूर्णिमा के बारे में. तो बिना देरी किये चलिए शुरू करते हैं बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है.
बुद्ध पूर्णिमा क्या है – What is Buddha Purnima in Hindi

बुद्ध पूर्णिमा को बुद्ध जयंती के रूप में भी जाना जाता है जो बौद्धों का सबसे पवित्र त्योहार है. बुद्ध पूर्णिमा को भगवान बुद्ध की याद में मनाया जाता है. यह वैशाख में पूर्णिमा की रात (हिंदू कैलेंडर के अनुसार जो आमतौर पर अप्रैल या मई में पड़ता है) पर पड़ता है. लॉर्ड बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे और उन्हें विष्णु का नौवां अवतार कहा जाता है.
बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं उनका जन्म, उनका जन्म और उनकी मृत्यु (निर्वाण). ऐसा माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त किया और उसी दिन उनका निधन हो गया. बुद्ध पूर्णिमा को बुद्ध जयंती , वैसाक, वैशाख और बुद्ध के जन्मदिन के रूप में भी जाना जाता है.
गौतम बुद्ध कौन थे?
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में सिद्धार्थ गौतम के रूप में हुआ था. वह एक वास्तविक ऐतिहासिक व्यक्ति थे, जो कि शाकाल के एक राजकुमार थे, जो आधुनिक भारत और नेपाल की सीमा से लगे एक छोटे से राज्य के लोग थे. वह समृद्धि और सामाजिक सुधार के समय में रहते थे. सोलह वर्ष की आयु में, सिद्धार्थ ने एक सुंदर महिला से शादी की और उनका एक बेटा था.
उनके जीवन में मोड़ तब आया जब सिद्धार्थ सत्ताईस वर्ष के थे और उन्होंने महल के मैदान के बाहर उद्यम किया. वह संसार (वृद्धावस्था, बीमारी और मृत्यु) के कष्टों से घिर गए, अपनी पत्नी, पुत्र और धन को छोड़कर आत्मज्ञान की तलाश में भटकता तपस्वी बन गए.
वह कई स्थानों पर भटकते रहें और अंततः पैंतीस वर्ष की आयु में वह बोधगया आयें, जहाँ वह एक पेड़ के नीचे बैठे थे. उन्होंने शपथ ली कि वह तब तक नहीं उठेंगे जब तक उन्हें आत्मज्ञान नहीं मिल जाता. इकतीस दिनों के एकांत साधना के बाद उन्होंने निर्वाण, स्थायित्व की स्थिति प्राप्त की. वह इस प्रकार बुद्ध बन गए.
बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है?
वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान् बुद्ध का जन्म लुंबिनी में हुआ था, जो बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए. गौतम बुद्ध का जन्म वैशाख पूर्णिमा के दिन होने के कारण इस तिथि को बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है. भगवान बुद्ध ने सत्य की खोज के बाद लोगों को उपदेश दिए, उन उपदेशों को हमें याद रखना चाहिए.
बुद्ध पूर्णिमा का महत्व
भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात् वैशाखी पूर्णिमा के दिन ही हुए थे. ऐसा किसी अन्य महापुरुष के साथ आज तक नहीं हुआ है. बौद्ध लोग इस तिथि को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से मनाते हैं.
बुद्ध पूर्णिमा कब मनाया जाता है?
यदि आप जानना चाहते हैं की बुद्ध पूर्णिमा कब मनाया जाता है, तब आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की, हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वैशाख महीने की पूर्णिमा (Vaishakha Purnima) को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. वहीँ ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा हर साल अप्रैल या मई महीने में आती है.
इस वर्ष 2019 को बुद्ध पूर्णिमा 18 मई को है.
बुद्ध पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 18 मई 2019 को सुबह 04 बजकर 10 मिनट से पूर्णिमा तिथि समाप्त: 19 मई 2019 को सुबह 02 बजकर 41 मिनट तक
बुद्ध पूर्णिमा कैसे मनाया जाता है?
बुद्ध जयंती का मुख्य उत्सव बोधगया में होता है. बौद्धों के लिए, बोधगया गौतम बुद्ध के जीवन से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. बोधगया, वह तीर्थ जो बुद्ध के ज्ञान के स्थान को चिह्नित करता है. बोध गया भारत में बिहार के गया जिले का एक छोटा सा शहर है.
दुनिया भर से बड़ी संख्या में बौद्ध भक्त भगवान बुद्ध को उनके सम्मान में श्रद्धांजलि देने के लिए इकट्ठा होते हैं. मंदिर और क्षेत्र को रंगीन बौद्ध झंडे के साथ सजाने के अलावा, बौद्ध अपने घरों को रोशनी, मोमबत्तियों और दीयों से सजाते हैं. सुबह की प्रार्थना के बाद, भिक्षुओं का रंगारंग जुलूस, बड़े प्रसाद के साथ पूजा, मिठाई और नमकीन का वितरण होता है.
अन्य स्थानों में प्रार्थना, उपदेश और बौद्ध धर्म के गैर-रोकटोक मठ, धार्मिक हॉल और घरों में गूंजते हैं. इस दिन बौद्ध स्नान करते हैं और केवल सफेद कपड़े पहनते हैं. लोग भगवान बुद्ध की प्रतिमा को धूप, फूल, मोमबत्तियाँ और फल चढ़ाते हैं. महाबोधि वृक्ष, जिसे “पीपल-वृक्ष” या पवित्र अंजीर के पेड़ के रूप में भी जाना जाता है, की पूजा की जाती है और प्रसाद भी चढ़ाया जाता है.
यह उस वृक्ष के रूप में जाना जाता है जिसके तहत बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त किया था. परंपरागत रूप से, बौद्ध शुद्ध शाकाहारी हैं. जो लोग मांसाहारी हैं, वे इस दिन मांस नहीं खाते हैं. घरों में मीठे पकवानों वाली खीर तैयार की जाती है. कई स्थानों पर पक्षियों को पिंजरों से मुक्त करना भी एक प्रथा है. वे अपना पूरा दिन बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं पर प्रवचन सुनने में व्यतीत करते हैं.
बुद्ध पूर्णिमा के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
चलिए अब जानते हैं की बुद्ध पूर्णिमा के दिन क्या नहीं करना चाहिए. किन चीज़ों को आपको भूल से भी बुद्ध पूर्णिमा पर न करें.
– कभी भी बुद्ध पूर्णिमा के दिन मांस (Non Veg) ना खाएं.
– किसी भी तरह का कलह घर में ना करें
– वहीँ किसी को भी अपशब्द ना कहें.
– इस दिन खुदको और औरों को झूठ बोलने से बचें.
भगवान बुद्ध के महत्वपूर्ण उपदेश क्या हैं?
भगवान बुद्ध तो वाकई में बहुत ही महान पुरुष थे, लेकिन वहीँ उनके द्वारा कही गयी उपदेश आज के समय में उतने ही कारगर हैं जितने के पहले हुआ करते थे. चलिए भगवान बुद्ध के महत्वपूर्ण उपदेश के बारे में जानते हैं.
1. मनुष्य को अतीत के बारे में नहीं सोचना चाहिए और न ही भविष्य की चिंता करनी चाहिए. हमें अपने वर्तमान समय पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. यही खुशी का मार्ग है.
2. मनुष्य को अपने शरीर को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी है. अगर शरीर स्वस्थ नहीं है तो आपकी सोच और मन भी स्वस्थ और स्पष्ट नहीं होंगे.
3. सभी गलत कार्य मन में जन्म लेते हैं. अगर आपका मन परिवर्तित हो जाए तो मन में गलत कार्य करने का विचार ही जन्म नहीं लेगा.
4. हजारों खोखले शब्दों से वह एक शब्द अच्छा है, जो शांति लेकर आए.
5. किसी से घृणा करने से आपके मन की घृणा खत्म नहीं होगी, यह केवल प्रेम से ही खत्म किया जा सकता है. वैसे ही बुराई से बुराई खत्म नहीं होती, वह प्रेम से खत्म होती है.
6. जो लोग जितने लोगों से प्यार करते हैं, उतने लोगों से ही वे दुखी होते हैं. जो प्रेम में नहीं है, उसके कोई संकट नहीं है.
7. एक जंगली जानवर से ज्यादा खतरनाक एक कपटी और दुष्ट मित्र होता है क्योंकि जानवर आपको केवल शारीरिक नुकसान पहुंचाता है, जबकि दुष्ट मित्र आपकी बुद्धि—विवेक को नुकसान पहुंचाता है. ऐसे मित्रों से सावधान रहना चाहिए.
8. संदेश और शक की आदत भयनाक होता है, इससे रिश्तों में खटास आती है. मित्रता टूट जाती है.
9. मनुष्य को क्रोध नहीं करना चाहिए. आपको क्रोध की सजा नहीं मिलती है बल्कि आपको क्रोध से सजा मिलती है.
10. हजारों लड़ाइयां जीतने से अच्छा है कि आप स्वयं पर विजय प्राप्त करो, फिर विजय हमेशा आपकी ही होगी.
11. दुनिया में इन तीन चीजों को कभी छिपाया नहीं जा सकता है: चांद, सूरज और सत्य.
12. सच्चाई के रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति के दो ही गलतियां कर सकता है. पहला — या तो वह पूरा रास्ता तय नहीं करता है. दूसरा — या फिर उस रास्ते पर नहीं चलेगा.
13. मनुष्य के लिए अपने लक्ष्य को पा लेने से अच्छा है कि लक्ष्य को पाने की यात्रा अच्छी हो.
बुद्ध पूर्णिमा क्यों मानते है?
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